वर्षरम्भ से 29 मार्च तक इस राशि पर शनि की नीच दृष्टि रहने से शत्रुभय, दुष्ट व्यक्ति द्वारा हानि सम्भव है। ता. 29 मार्च से वर्षान्त तक इस राशि पर शनि-साढ़ेसति का प्रभाव रहने से भी वर्षभर व्यर्थ की भागदौड़, मानसिक परेशानियां, कोर्ट-केस तथा अचानक रोग उपस्थित होने के योग रहेंगे। वर्षारम्भ से 20 जन. तक राशिस्वामी वक्री अवस्था में नीचराशिगत होकर शनि के साथ षडाष्टक सम्बन्ध बनाएगा, जिससे बनते कामों में उलझनें, धन-हानि व परेशानियों का सामना होगा। स्वास्थ्य भी खराब रहे। वर्षारम्भ से 17 मई तक राहु द्वादशस्थ रहने से अचानक धन हानि से बचें।
ता. 3 अप्रै. से 6 जून तक मंगल पुनः नीच (कर्क) राशिगत संचार करने से इस अवधि में धन-हानि तथा बनते कामों में विघ्न/बाधाएं उत्पन्न होंगी। ता. 6 जून से 27 जुला. के मध्य मंगल-शनि के मध्य षडाष्टक सम्बन्ध, तदुपरान्त 12 सितं. तक सप्तम दृष्टि सम्बन्ध रहने से तनाव एवं उत्तेजना के कारण मन-अशान्त रहे। कठिनता से निर्वाह योग्य आय के साधन बनें, खर्च अधिक हों। ता. 27 अक्तू. से 6 दिसं. तक मंगल अष्टमस्थ रहने से स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखें।
उपाय- (1) शुक्ल पक्ष के मंगलवार से शुरु करके 21 मंगलवार तक व्रत रखना शुभ होगा। प्रातः एवं सायंकाल श्रीहनुमान चालीसा का पाठ करके श्रीहनुमान मन्दिर में सिन्दूर-तेल-नारियल तथा मिष्ठान्न प्रसाद चढ़ाना शुभ होगा।
(2) ता. 29 मार्च के बाद प्रत्येक शनिवार सरसों के तेल में अपना मुख देखकर शनि का बीज मन्त्र पढ़ते हुए शनिदेव की मूर्त्ति को चढ़ाते रहें। शनि मन्त्र- "ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः ।।"